मोमबती

by Dev B

कुछ खास की आश में
दीप्त हो बना प्रकाश मैं
मन मेरा था मोम कभी
जल कर धुँआ हुआ अभी
रोशिनी की थी अभी यही
पर तल मेरे बस अँधेरा ही
बहुत जला मैं बन बाती
बुझने का बक्त हुआ साथी

भूल मुझे,कोई दीप नया
फिर तुम वहीँ जलाओगे
जहाँ प्रकाश बन इठलाया
आज राख वही मैं बना
कोशिश, कुछ शेष न बचूं
यादे बन अवशेष न रहूँ
बहुत जला मैं बन बाती
बुझने का बक्त हुआ साथी

-Dev B

जो लोग कभी हमारी खुशियों हुआ करते थे, हम आज की खुशियों में उन को भूल जाते…

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